पर आज गुम क्यूँ नौजवां हैं, असत्य के जंजाल मे |
सरफरोशी की तमन्ना, दिल में लेकर आग सी |
लाल मिट्टी ले चला वो, जलियाँवाला बाघ की |
त्याग कर घर बार को, वो चल पड़ा उस राह पे |
वो होश में था नौजवां, जब सब के सब गुमराह थे |
धर्म से पहले रखा, सदैव उसने देश को |
छोड़कर प्रथाओं को, बदल लिया फिर भेस को |
116 दिन गुज़ारे, कठोर-तप उपवास में |
हंसता रहा फिर भी भगत सिंह, गोरों के कारावास में |
तब चडगया सूली भगत सिंह, उम्र तेईस साल में |
पर आज गुम क्यूँ नौजवां हैं, असत्य के जंजाल मे |
मातृभूमि के प्रति, कैसा था उनका प्रेम देखो,
मातृभूमि के प्रति, कैसी थी उनकी कामना |
मातृभूमि के प्रति, कैसा था उनका त्याग देखो,
मातृभूमि के प्रति, कैसी है उनकी भावना |
जलियाँवाला बाघ पहुंचे, जब उम्र बारा साल थी |
जग गई तब देश भक्ति, जब देखा मिट्टी लाल थी |
जिस उम्र में लगता है हमको, सब ही कुछ नया नया |
उस उम्र में वो नौजवान, प्राण अपने दे गया |
इतिहास का भी ज्ञान था, क्रांतिकारी वो महान था |
आज़ाद थे विचार उसके, जब क़ैद हिन्दुस्तान था |
क्रांति की बातें करो, अपना इतिहास खुद पढ़ो |
गुमराह मत हो नौजवानों,अपनी राहें खुद चुनो |
तब चडगया सूली भगत सिंह, उम्र तेईस साल में |
पर आज गुम क्यूँ नौजवां हैं, असत्य के जंजाल मे |
-Written By Milind Panwar
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