इंसाफ न्याय की आशा में, बस मातम चारों ओर हुआ |
यहां वर्दी भी विवश हुई, कानून भी घबरा रहा था |
भीड़ के आघात से कर, कल्पवृक्ष मुस्कुरा रहा था |
यहां धर्म की है मान्यता और धर्म पर है सवाल भी |
पर भगवा तो असाध्य है, वह सूर्य है पाताल भी |
यहां लोग बसते राम के और कृष्ण के संस्कार के |
पर धर्म को जो त्याग दे, वह शत्रु है संसार के |
उसका स्वभाव बहुत ही सीधा है, वह तपस्वी जीवन जीता |
जिसके वस्त्र भगवा खादी के और वाणी में भगवत गीता है |
क्रोध में तो श्राप दे, वह प्रसन्न तो वरदान भी |
वह एक क्षण में संघार करे, वह देता जीवनदान भी |
जो सीधा साधा सरल स्वभाव, उसकी हत्या करने वाले कौन हैं |
जो प्रत्येक मुद्दे पर शोर करते थे, वह आज न जाने क्यों मान हैं |
सब रामायण महाभारत पढ़ते, पर समझ कितना पातें हैं |
के साधुओं की रक्षा हेतु, तो स्वयं नारायण भी आ जातें हैं |
-Written By Milind Panwar
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