Main Kranti Launga


सोचने लगा हूँ मैं,
किसी खोज में चला हूँ मैं |
अब स्थिर मेरे विचार हैं,
खुदको टोकने लगा हूँ मैं |
पूछने लगा हूँ खुद से,
सवाल खुद के बारे में |
चेहरे सबके पढता हूँ,
नकाब जानूँ सारे मैं |

कौन कितना कैसा है,
क्या सबसे बड़ा ये पैसा है |
विद्या का जो स्रोत था,
क्या वो अब भी मंदिर जैसा है |
कहते उसे देवी हैं बताते उसे नारी हैं |
फिर क्यूँ बलात्कारियों की,
संख्या इतनी भारी है |
अधिकारी है, अधिकार मांग रहा है |

कोई आरक्षण से तंग है,
कोई काम मांग रहा है |
कोई धर्म जात के नाम पर,
झूठा दान मांग रहा है  |
कोई हो रहा शहीद अपने देश के लिए है |
और कोई आखिरी साँस तक सिर्फ जाम मांग रहा है |
तो सोचने लगा हूँ मैं,
किसी खोज में चला हूं मैं |

Confusion Phase Of  Poet.
मैं सोच में था पड़ गया,
मैं खुद ही खुद से लड़ गया,
मैं अड़ गया यह बात पर,
के क्या मैं कर दिखाऊंगा |
पन्नों पर कलम चला कर,
थोड़े क्रांति लाऊंगा |

मैं सोच में था पड़ गया,
विचार मेरे खत्म थे |
समाज के विचार खुद,
समाज पर ही ज़ख्म थे |
बदलने इस समाज को,
अकेला थोड़ी जाऊंगा |
पन्नों पर कलम चला कर,
थोड़ी क्रांति लाऊंगा |

Realisation Phase Of Poet.
तो वो कहता है कि
कलाओं को समेट कर,
सुधार खुद में कर लिया |
समाज की ये बंदिशों को,
बेड़ियाँ समझ लिया |
है जो छोटी सोच की ये,
बेड़ियाँ हटाउगा |
पन्नो पर कलम चला कर,
अब मैं क्रांति लाऊंगा |

बदलना चाहता सोच को,
सियासतों की मोच को |
कपड़ों से परखने वाली,
हर वो खोटी सोच को |
खोटी सोच की ये मोच पर,
मरहम भी मैं लगाऊंगा |
पन्नो पर कलम चला कर,
अब मैं क्रांति लाऊंगा |

कला से थोड़ा काम लो,
जो करना है वो ठान लो |
अकेले तुम ही काफी हो,
कला को बस पहचान लो |
चित्रकार हो तो चित्रकारी से जवाब दो |
हो गीतकार मुश्किलों को अंतरे में डाल दो |
लेखक हो तो लिख दो,
कहानियां सब शहीदों की |
हर छोटी बड़ी बात का कला से तुम बयान दो |
सारी मन की बातें मैं,
लेख में बताऊँगा |
पन्नो पर कलम चला कर,
अब मैं क्रांति लाऊंगा |

-Written By Milind Panwar 

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